नीली रेखाओं और लाल चेहरों वाला शहर

आप लोग सोचते होंगे कि दिल्ली के लोग कैसे इतने खौफ में जीते होंगे। एक तरफ लाल चेहरे वाले बंदरों का आतंक और दूसरी तरफ नीली रेखाओं वाली बसों का आंतंक। मगर दिल्ली के लोग बहुत ही व्यावाहारिक हैं। हर हालात में अपने को ढाल लेते हैं। सीख जाते हैं।


दिल्ली के केंद्र में एक हरा भरा क्षेत्र है जिसे रिज एरिया कहा जाता है। यह रिज एरिया दक्षिण में धौला कूंआं से लेकर पश्चिम में नारायणा और केन्द्र में क्नॉट प्लेस के पास तक फैला है। इस रिज एरिया में बंदरों की आबादी बहुत हो गयी है जिससे बंदर आस पास की कालोनियों में घुस जाते हैं।  यह ढीठ  बंदर बेधड़क घरों में धुस जाते हैं और फ्रिज खोल कर उस  में से उठा कर मजे से सामान खाने लगते हैं। दिल्ली के सबसे बड़े अस्पताल एम्स में भी इनका बहुत आतंक है। कोई यदि फल ले कर मरीज को देखने यहां आये तो ये बंदर हाथ में पकड़ा फलों का थैला ही छीन लेते हैं और दूर भाग जाते हैं। जो लोग समझदार हैं वे पहले ही एक फल थैले से निकाल इनकी और उछाल देते हैं। फिर सारे  बंदर उस एक फल के पीछे भागते हैं और आप अपने बाकी फलों के साथ अस्पताल के अंदर खिसक सकते हैं। ऐसे लोगों को यहां प्रैक्टिकल यानि व्यावहारिक कहा जाता है। यह व्यावहारिकता यहां के हवा पानी में है।  बच्चा पैदा होते ही इसे सीख जाता है।

आपको हैरानी नहीं होगी यदि दूसरी कक्षा का बच्चा घर आ कर मां से बोले “मम्मी मम्मी! क्लास में जो क्यूट सी नयी लड़की आयी है ना निशा, मैंने उससे कहा कि अगर तू मुझे अपने पास की सीट पर बैठने दे तो मैं अपने टिफिन से आधी मैगी खाने के दे सकता हूं और वो मान गयी।” मां  अपने बच्चे की इस व्यवहार कुशलता पर फूल कर कुप्पा हो जायेगी कि देखो मेरा बच्चा कितना प्रैक्टिकल है। बड़ा होकर बहुत सफल होगा।

आप यदि छोटे छोटे शहरों से, खाली बोर दोपहरों से, झोला उठा कर यहां चले आये हैं या आने की सोच रहे हैं तो अपना झोला, थैला, बैग आदि अच्छी तरह चैक कर लें कि कहीं उसमें आप अपना कोई सिद्धांत विद्धांत साथ में न ले आयें। ये सिद्धांत यहां कई बार बहुत आढ़े आते हैं। सिद्धांत व्गैरह की बात करने वालों को यहां अव्यवहारिक माना जाता है।

अब जरा नीली रेखा वाली बसों यानि कि ब्लूलाईन की बात कर ली जाये। सारे मंत्री, मुख्यमंत्री और जनता कोशिश करके हार गये मगर कोइ इनका बाल भी बांका नहीं कर पाया तो इसके पीछे इन बस मालिकों की व्यवहारिकता ही है। आप सोचते होंगे कि यह बस वाले यदि इस तरह से बसे चलाते हैं तो ट्रैफिक वाले तो लगातार ही इनके पीछे पड़े रह्ते होंगे और ट्रैफिक वालों से ये लोग खौफ खाते होंगे। मगर यह बस वाले बहुत ही प्रैक्टिकल हैं।

इसी तरह से ट्रैफिक वाले भी बहुत प्रैक्टिकल हैं। हर बस के रूट पर जितनी भी लाल बत्तियां होंगी उन सब पर प्रति माह सौ रुपया। हिसाब लगाइये। दिल्ली में लगभग छः हजार बसें हैं और हजारों लाल बत्तियां। प्रति बस, प्रति लालबत्ती, प्रति माह सौ रुपये के हिसाब से कितने करोड़ हुए।  इतनी टर्नओवर के सामने तो अंबानी का रिलांयस फ्रैश भी शरमा जाये। देश की बढ़ती मुद्रास्फीति में इस मुद्रा विनिमय का कितना योगदान है इसका अंदाजा अपने वित्त मंत्री जी को भी नहीं होगा। ये लोग हर चौराहे पर माह के पहले दस दिन मुस्तैद मिलते हैं उगाही के लिये। छः तारीख से ही जिसके पैसे न आयें उन्हे इशारे करने लगते हैं। दस तारीख तक पैसे न मिलें तो बस जब्त। अब बेचारा जो ड्राइवर नया नया आया होता है वो इन इशारों को समझ नहीं पाता और बस जब्त करवा बैठता है।

अब अपने नीली पगड़ी वाले मन्नू भाई यहां की राजनीति में ‘एक्सिडेंटली’ आ गये हैं। लाल बत्ती पर बैठे लोगों के इशारों को समझ नहीं पा रहे। दस तारीख आने को है, लगता है अपनी बस जब्त करवायेंगे।


Comments

5 responses to “नीली रेखाओं और लाल चेहरों वाला शहर”

  1. श्रीश शर्मा Avatar
    श्रीश शर्मा

    वाह जगदीश भाई, दिल्ली शहर का खूब आईना दिखाया आपने। रुचिकर रहा पढ़ना, आगे भी कभी-कभी ऐसी प्रैक्टिकल जानकारी देते रहा करें। :)

  2. Sanjeet Tripathi Avatar
    Sanjeet Tripathi

    बहुत खूब, बहुत बढ़िया परिचय करवाया आपने अपनी नगरिया से

  3. sameerlal Avatar
    sameerlal

    अब जान पाये दिल्ली को कुछ कुछ. खाली झोला ही लेकर आयेंगे. बहुत रोचक एवं दिलचस्प.

  4. अनूप शुक्ल Avatar
    अनूप शुक्ल

    ये लफ़ड़ा है नीली बसों का!

  5. Jagdish Yadav Avatar
    Jagdish Yadav

    I liked it. It explained the whole story in brief.

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