माँ – निदा फा़ज़ली Maa by Nida Fazli

माँ – निदा फा़ज़ली Maa by Nida Fazli
निदा फा़ज़ली की तीन नज़्में

निदा फा़ज़ली
निदा फा़ज़ली

एक दिन

सूरज एक नटखट बालक सा
दिन भर शोर मचाए
इधर उधर चिड़ियों को बिखेरे
किरणों को छितराये
कलम, दरांती, बुरुश, हथोड़ा
जगह जगह फैलाये

शाम
थकी हारी मां जैसी
एक दिया मलकाए
धीरे धीरे सारी
बिखरी चीजें चुनती जाये।

माँ

बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका-बासन
चिमटा फुकनी जैसी माँ

बाँस की खुर्री खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी
थकी दोपहरी जैसी माँ
चिड़ियों के चहकार में गुँजे
राधा-मोहन अली-अली
मुर्ग़े की आवाज़ से खुलती
घर की कुंडी जैसी माँ

बिवी, बेटी, बहन, पड़ोसन
थोड़ी थोड़ी सी सब में
दिन भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी माँ

बाँट के अपना चेहरा, माथा,
आँखें जाने कहाँ गई
फटे पूराने इक अलबम में
चंचल लड़की जैसी माँ

भीगा माँ का प्यार

मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार
दुख ने दुख से बात की बिन चिठ्ठी बिन तार

छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है बाहों भर संसार

लेके तन के नाप को घूमे बस्ती गाँव
हर चादर के घेर से बाहर निकले पाँव

सबकी पूजा एक सी अलग-अलग हर रीत
मस्जिद जाये मौलवी कोयल गाये गीत

पूजा घर में मूर्ती मीरा के संग श्याम
जिसकी जितनी चाकरी उतने उसके दाम

सातों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर
जिस दिन सोए देर तक भूखा रहे फ़कीर

अच्छी संगत बैठकर संगी बदले रूप
जैसे मिलकर आम से मीठी हो गई धूप

सपना झरना नींद का जागी आँखें प्यास
पाना खोना खोजना साँसों का इतिहास

चाहे गीता बाचिये या पढ़िये क़ुरान
मेरा तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान

बच्चा बोला देख कर,मसजिद आलीशान
मेरे खुदा तुझ एक को, इतना बडा मकान

मंदिर के अंदर चढे घी-पूरी-मिष्ठान
मंदिर के बाहर खडा ईश्वर माँगे दान

मै था अपने खेत मे,तुझको भी था काम
तेरी मेरी भूल का, राजा पड गया नाम

जादू-टोना रोज का, बच्चो का व्यवहार
छोटी सी एक गेंद मे भर दे सब संसार

“सा” से “नी” तक सात सुर, सात सुरों का राग
उतना ही संगीत तुझमे, जितनी तुझमें आग

सीधा-सादा डाकिया, जादू करे महान
इक ही थैले मे भरे, आँसू और मुस्कान

जीवन के दिन-रैन का, कैसे लगे हीसाब,
दीमक के घर बैठकर, लेखक लिखे किताब

मुझ जैसा इक आदमी मेरा ही हमनाम
उल्टा-सीधा वो चले, मुझे करे बदनाम

युग-युग से हर बाग़ का, ये ही एक उसूल
जिसको हँसना आ गया वो ही मट्टी फूल

सुना है अपने गाँव में, रहा न अब वह नीम
जिसके आगे माँद थे, सारे वैद-हक़ीम।

(पहली नज्म समकालीन भारतीय साहित्य से तथा बाकी दोनों यहां से ली गयी)


Comments

6 responses to “माँ – निदा फा़ज़ली Maa by Nida Fazli”

  1. तीनों ही बहुत सुंदर प्रस्तुति. धन्यवाद इस पेशकश के लिये.

  2. सिंधु श्रीधरन Avatar
    सिंधु श्रीधरन

    अहा… मेरे पसंद के…

    निदा फ़ाज़ली साहब की रचनाएं मुझे बहुत पसंद है। “गरज बरस…”, “अपनी मर्ज़ी से कहाँ…”। और खास तौर पर ये तीन।

    “मै रोया परदेस में” पूरा याद है…। क्या लिखते है, है ना..?

    आपने याद दिलाया तो एक दो ग़ज़लें सुनना हो रहा है… शुक्रिया, जगदीश जी।

  3. मेरे संग्रह ‘छेखता है मन’ की माँ शीर्षक रचना से कुछ अंश:

    अपने आगोशोँ मे लेकर मीठी नीँद सुलाती माँ
    गर्मी हो तो ठंडक देती, जाडोँ मेँ गर्माती माँ

    हम जागेँ तो हमेँ देखकर अपनी नीँद भूल जाती
    घंटोँ,पहरोँ जाग जाग कर लोरी हमेँ सुनाती माँ

    अपने सुख दुख मेँ चुप रहती शिकन न माथे पर लाती
    अपना आंचल गीला करके ,हमको रहे हंसाती माँ

    क्या दुनिया, भगवान कौन है, शब्द और अक्षर है क्या
    अपना ज्ञान हमेँ दे देती ,बोली हमे सिखाती माँ

    पहले चलना घुट्ने घुट्ने और खड़े हो जाना फिर
    बच्चे जब ऊंचाई छूते बच्चोँ पर इठलाती माँ
    –अरविन्द चतुर्वेदी
    http://bhaarateeyam.blogspot.com

  4. मनीष Avatar
    मनीष

    निदा फाजली की
    बेसन की सोंधी रोटी पर
    खट्टी चटनी जैसी माँ
    मेरी पसंदीदा रचना है । धन्यवाद यहाँ पेश करने के लिए ।

    आपकी तीसरी प्रस्तुति को नज्म कहना ठीक ना होगा । दरअसल ये दोहे हैं और जगजीत की आवाज में उन्हें सुनने का लुत्फ ही अलग है ।

  5. डा. महेश परिमल् Avatar
    डा. महेश परिमल्

    मै लोरियो पर काम कर रहा हू. मुझे लोक्गीतो से लोरिया इकटठी करनी है.क्या कोइ मेरी सहायता कर सकता है?
    Dr.Mahesh Parimal
    drmaheshparimal@india.com

  6. Wonderful feelings

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