चिट्ठों में कूड़ा

चिट्ठों में कूड़ा या खजाना – नजर नजर का फर्क

चिट्ठों में कूड़ा
चिट्ठों में कूड़ा

बात उन दिनों की है जब मैं एक युरोपियन एयरलाइंस के लिये काम करता था। ऑफिस में बहुत सारे नये कंप्यूटर आये थे। विंडोस 3.1 (याद है किसी को?) वाले। हर कंप्यूटर के साथ में बहुत सी सॉफ्टवेयर की किताबें और बंडल के बंडल छोटी फ्लॉपियां। (अरे भई सीडी उन दिनों कहां होतीं थीं)।
बॉस परेशान कि इतनी सारी किताबें और फ्लोपियों का क्या किया जाये। बोले इस कूड़े का क्या किया जाये। जब ढेर सी एक सी ओरिजनल सोफ्टवेयर और उनकी किताबें एक साथ आ जायें तो किस काम की?  काम तो एक ही से चलाया जा सकता है।

मुझे लगा कि ऐसी कीमती किताबें और सॉफ्ट्वेयर को कोई कूड़ा कैसे कह सकता है?

उनमें से कुछ किताबें और सॉफ्ट्वेयर मैं ले आया था उन दिनों।  किताबें पढ़ीं भी। सॉफ्ट्वेयर भी काम आये।

पिछले दिनों वही फ्लॉपियां कुड़े जैसी हालत में घर के स्टोर से निकलीं और सात रु किलो के पुराने प्लास्टिक में बिकीं। बिक तो वह किताबें भी रहीं थीं मगर पड़ोस के युवक की नजर पड़ गयी उन पर। झट से बोला ’यह खजाना क्यों बेच रहे हैं कबाड़ में।” अब वह किताबें वह युवक ले गया पढ़ने के लिये।

एक ही चीज जो किसी के लिये कूड़ा हो सकती है वही चीज किसी दूसरे के लिये खजाना हो सकती है। उसी प्रकार जो चीज आज मेरे लिये खजाना है कल को हो सकता है वही चीज मेरे लिये कूड़ा हो जाये।

जरा सोचिये यदि मुझे शेयर बाजार की जानकारी नहीं है तो शेयर बाजार पर छपने वाले सभी चिट्ठे मेरे लिये कूड़ा ही हैं। एक बात और यदि मुझे शेयर बाजार की बहुत अच्छी जानकारी है तो हो सकता है कि शेयर बाजार पर छपने वाली सभी जानकारी का मुझे पहले से ही पता हो। उस दशा में भी शेयर बाजार पर छपने वाले चिट्ठे मेरे लिये कूड़ा ही हुए।

पिछले दिनों रवि जी ने जब तरीका बताया कि चिट्ठों से कूड़ा पोस्ट  अलग कर अपनी पसंद के चिट्ठे कैसे पढ़ें तो खूब हंगामा हुआ। मुझे विश्वास है कि जिस गति से हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ रही है देर सवेर सभी को यह तरकीब अपनानी पड़ेगी। यदि आप केवल अपना चिट्ठा दूसरों से पढ़वाना ही नहीं चाहते दूसरे चिट्ठों को भी पढ़ना चाहते हैं तो इससे बेहतर कोई तरीका शायद ही हो।

आज चिट्ठाजगत पर जाकर देखा तो जान कर बहुत खुशी हुई कि वहां अपनी पसंद के चिट्ठे चुनने का बहुत ही आसान और उन्नत तरीका मौजूद है। चंद मिनट लगे और मैंने अपनी पसंद के चिट्ठे चुन लिये। आप भी यदि चाहते हैं कि अपनी पसंद के चिट्ठों की कोई पोस्ट पढ़ने से न छूट जाये तो अपनी पसंद को चिन्हित कीजिये।

एक बात और यदि आप चाहते हैं कि आपकी पसंद के चिट्ठे दूसरे लोग भी पढ़ें तो भी आप उन्हें अपनी पसंद के चिट्ठों में शामिल कीजिये। हो सकता है कि जो चिट्ठा अधिक से अघिक लोगों की पसंद का होगा उसे और अधिक लोग पढ़ना चाहेंगे। यह भी हो सकता है कि बहुत से चिट्ठे बहुत अच्छे हों मगर अभी तक बहुत लोगों की उन पर नजर न गयी हो।


Comments

3 responses to “चिट्ठों में कूड़ा या खजाना – नजर नजर का फर्क”

  1. आलोक कुमार Avatar
    आलोक कुमार

    c/चिन्हित/चिह्नित
    आधा ह है, न नहीं।

  2. रवि Avatar
    रवि

    धन्यवाद. मैं ठीक यही बात कहना चाह रहा था, परंतु भाई लोगों ने ग़लत समझ लिया… अब मेरी संप्रेषणीयता को ही मैं दोष दे सकता हूं – मैं कहना कुछ चाहता हूं, कह कुछ (और तरीके से) जाता हूँ और कुछ और समझ लिया जाता है!

    यदि आपको उज्र न हो तो आप अपनी पसंद के चिट्ठाजगत् की फ़ीड सार्वजनिक भी कर सकते हैं ताकि दूसरे जिनकी रूचि आपसे मिलती जुलती है, वे इसका लाभ ले सकें और नए सिरे से वन – टू वन टू कर अपनी सूची न बनाना पड़े. पर, गालियाँ खाने के लिए तैयार रहिएगा – लोग बोलेंगे सूची में ये चिट्ठा क्यों और ये क्यों नहीं?

    हाँ, अर्ध-सार्वजनिक तो कर ही सकते हैं. आप अपने पसंदीदा चिट्ठाजगत् की सूची मुझे निजी तौर पर (तथा अपने दोस्तों को) तो बांट ही सकते हैं – आपके पसंद को पूरा गोपनीय रखने की शर्त पर!

  3. चिट्ठाजगत पर मेरी पसंद « आईना Avatar
    चिट्ठाजगत पर मेरी पसंद « आईना

    […] पर मेरी à¤ªà¤¸à¤‚द 28Jan08 मैंने अपनी पोसà¥à¤Ÿ चिटà¥à¤ à¥‹à¤‚ में कूड़ा या खजाना – नजर नजर का अ में जब बताया कि कैसे आनन फानन में आप […]

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