विंडोज़ विस्टा पर एक नजर

विंडोज़ विस्टा की उपयोगिता पर सवाल उठाता हिंदी में एक मजेदार लेख आज के नवभारत टाईम्स में छपा है ‘इस खिड़की से क्या नजर आता है?’ पढ़ने के लायक लेख है। संजय वर्मा ने अपने इस लेख में विंडोज़ विस्टा की उपयोगिता पर सवाल उठाते हुए लिखा है:
“बदलाव के जो ट्रेंड विस्टा की अग्निपरीक्षा साबित हो सकते हैं, उनमें पहला यह है कि आज बाजार में ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर बहुतायत में उपलब्ध हैं। ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर विंडोज और ऑफिस सिस्टमों की तरह ही कंप्यूटर को मौजूदा जरूरतों के मुताबिक चलाने वाले ऐसे औजार हैं, जिन्हें किसी एक कंपनी ने नहीं, बल्कि स्वैच्छिक समूहों या व्यक्तियों ने डिवेलप किया है।

इनकी सबसे बड़ी खासियत एक तो इनका बिल्कुल मुफ्त उपलब्ध होना है, और दूसरे, जरूरतों के मुताबिक इनमें तब्दीली मुमकिन है। मजे की बात तो यह है कि आईबीएम जैसी कंपनी इन मुफ्त ऑपरेटिंग सिस्टमों को सपोर्ट करने वाली तकनीकें बेचकर इनके प्रयोग को बढ़ावा ही दे रही है। ऐसा सबसे प्रचलित ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर है ‘अपाचे’। इसी तरह ‘लीनक्स’ ऑपरेटिंग सिस्टम भी बड़े पैमाने पर इस्तेमाल में लाया जा रहा है।

इसलिए विस्टा के लॉन्च के साथ ही बरसों पुरानी वह बहस फिर जिंदा हो गई है कि क्या ओपन सोर्स के सामने क्लोज्ड सोर्स ऑपरेटिंग सिस्टम (क्लोज्ड सोर्स का अर्थ है वैसा सॉफ्टवेयर, जिसमें कोई तब्दीली सिर्फ उसकी निर्माता कंपनी ही कर पाए) टिक पाएगा?”

वे आगे लिखते हैं:

“विस्टा की राह में एक बड़ी बाधा और है, और वह यह बताई जा रही है कि इस बीच कंप्यूटर की दुनिया में आए बदलावों को शायद माइक्रोसॉफ्ट नहीं पढ़ पाया है। हाल तक कहा जाता था कि जो पर्सनल कंप्यूटर अपने भीतर इंस्टॉल (समाहित) सॉफ्टवेयर पर चलता है और जिसके लिए नेटवर्किंग एक अ-महत्वपूर्ण चीज है, वह एक उम्दा कंप्यूटर हो सकता है। नेटवर्किंग की जरूरतों के सीमित रहते और वायरसों के हमले को संभाल पाने वाले पुख्ता इंतजामों के अभाव में माइक्रोसॉफ्ट के उत्पादों का विशाल बाजार बना, पर अब समूचा परिदृश्य उलट गया है। यानी नेटवर्किंग अहम हो गई है और यह कतई जरूरी नहीं रहा कि कंप्यूटर अपने भीतर हार्ड डिस्क पर मौजूद सॉफ्टवेयरों का मोहताज बना रहे।”

“….विस्टा की धूमधाम माइक्रोसॉफ्ट के लिए नया जीवन साबित होगी या बदलाव के लिए नया मौका जुटाएगी, इस सवाल के जवाब का सभी को बेसब्री से इंतजार रहेगा। ”

पूरा लेख आप यहां पढ़ सकते हैं। विंडोस विस्टा पर अंग्रेजी रिव्यू यहां पढ़ सकते हैं।


Comments

9 responses to “विंडोज़ विस्टा पर एक नजर”

  1. संजय बेंगाणी Avatar
    संजय बेंगाणी

    है भी महंगा!

  2. क्षितिज कुलश्रेष्ठ Avatar
    क्षितिज कुलश्रेष्ठ

    ओपन सोर्स और लिनक्स का गुणगान करना और माइक्रोसॉफ्ट की खिंचाई करना आज कल ऐसा फैशन हो गया है कि जो यह न करे वह कंप्यूटर की दुनिया में नीची नज़र से देखा जाता है। तो अखबार भी यही करेंगे। अब असलियत यह है कि कोई भी पर्सनल कंप्यूटर बेचने वाली कंपनी, एप्पल को छोड़ कर, अपने कंप्यूटर में विंडोज ही इस्तेमाल करने की हिदायत देते है, और पहले से ही इंस्टाल कर के बेचते हैं। एप्पल का अपना मैक.ओ.एस.एक्स अलग ही है। कोई भी कंपनी अपने उत्पाद पर ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करने की राय नहीं देती। अंतरजाल पर भी अधिकतर नई सेवाएं जैसे विडियो ऑन डिमांड या स्ट्रीमिंग मीडिया ओपन सोर्स को ध्यान में रख कर नहीं बनाई जा रहीं। तो ऐसे माहौल में जब तक कि पेटेंट और कॉपीराइट या पाइरेसी का बहाना बना कर कंपनियां माइक्रोसॉफ्ट का पलड़ा भारी किये हुए हैं, ओपन सोर्स की मुंह ज़बानी हिमायत करते रहने से कितना फर्क पड़ेगा? इस संदर्भ में डिजिटल राइट्स मैनेजमेंट पर चल रही बहस और सोनी तथा एप्पल के द्वारा किए गए प्रयत्न और अमेरिका का डी.एम.सी.ए. कानून महत्वपूर्ण हैं।

  3. जगदीश भाटिया Avatar
    जगदीश भाटिया

    मगर क्षितिज जी,
    खुशी की बात यह है कि हिंदी में इस प्रकार के लेख लिखे जा रहे हैं।

  4. जैसा कि संजय जी ने कहा एक तो यह महंगा है, दूसरा इसकी हार्डवेयर रिक्वायरमेंट बहुत ज्यादा है। अपने कम्प्यूटर में तो अपग्रेड के विनचल नहीं सकता।

    क्षितिज जी ने पहली लाइन में बहुत ही सही बात कही है। सब ओपन सोर्स की बातें तो करते हैं, इस्तेमाल कोई नहीं करता (उन्मुक्त जी जैसे कुछ अपवाद हैं)। क्योंकि सब उत्पाद विंडोज के इर्द-गिर्द ही बुने गए हैं।

    जगदीश जी ने भी ठीक कहा। लेकिन डबल खुशी की बात ये है कि अखबारों अब म्प्यूटर संबंधी ढंग के लेख लिखे जाने लगे हैं। पहले तो ऐसे लेखों के नाम पर बकवास छापी होती थी।

  5. उन्मुक्त Avatar
    उन्मुक्त

    मेरा अपना अनुभव है कि कंप्यूटर से संबन्धित लोग ओपेन सोर्स की वकालत न कर विंडोस़ की वकालत इसलिये करते हैं क्योंकि वे विंडोस़ को ही जानते हैं पर ओपेन सोर्स को नहीं। जैसे ओपेन सोर्स का प्रयोग स्कूल तथा कॉलेज स्तर पर बढ़ेगा यह ज्यादा लोकप्रिय होगा और कंप्यूटर से संबन्धित लोग इसकी वकालत करेंगे। ओपेन सोर्स का सबसे अच्छा पक्ष है, इसमें बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के झंझट का न होना।
    दूसरी बात कॉपीराईट के उल्लंघन की है। हम यह भी देखें किि कितने लोग हैं जो कि विंडोस़ का प्रयोग करते हैं पर कॉपीराईट के उल्लंघन नहीं करते। भारतवर्ष में शायद ही कोई इसका अपवाद हो। यहां तक की सरकारी ऑफिस में भी इसका खुला उल्लंघन होता है। यदि लोग कानून में ज्यादा विश्वास करें, आत्म विश्वास रखें तो ओपेन सोर्स का प्रयोग बढ़ेगा।
    २०१० के दशक में देखने की बात रहेगी कि किसका परला भारी रहता है: ओपेन सोर्स का या मालिकाना सॉफ्टवेर का। हिन्दी में इस तरह के लेख यह इशारा कर रहें हैं कि ओपेन सोर्स का महत्व बढ़ रहा है।

  6. रवि Avatar
    रवि

    “…सब ओपन सोर्स की बातें तो करते हैं, इस्तेमाल कोई नहीं करता (उन्मुक्त जी जैसे कुछ अपवाद हैं)। क्योंकि सब उत्पाद विंडोज के इर्द-गिर्द ही बुने गए हैं।…”

    यह बात कुछ हद तक सही है. कोई भी सॉफ़्टवेयर या हार्डवेयर बहु-प्रचलित विंडोज सिस्टम के लिए बनाया जाता है. लिनक्स जैसे तंत्रों में उन्हें चलाना तो एक आम उपयोक्ता के लिए आसमान से तारे तोड़ लाने जितना कठिन होता है. इसीलिए कुछ समय तक तो विंडोज की लोकप्रियता बनी ही रहनी है. हिन्दी की बात करें तो आज भी कोई बढ़िया हिन्दी का डीटीपी सॉफ़्टवेयर नहीं है जो विंडोज छोड़ अन्य मुक्त स्रोत तंत्रों में चले!

  7. संजय बेंगाणी Avatar
    संजय बेंगाणी

    हम चाह कर भी विंडोज को छोड़ नहीं सकते क्यों कि हमारे काम के सारे सॉफ्टवेर विंडोज पर ही चलते है.

  8. संजय भाई – क्या बेशर्मी की बात करते हो यार ;) काम ग्रिराफ़िक का करते हो फिर भी विंडोज़ की जय करते हो – माना कि Apple महंगा ज़रूर है मगर ग्रिराफ़िक के लिए सबसे सही सिस्टम यही तो है और ये मेरा अपना ख‌़याल है :)

    भाटिया जी, आपका बहुत धन्यवाद जो मुझे इतनी अच्छी जानकारी विस्तार के साथ पढ़ने को मिली।

  9. मनीषा Avatar
    मनीषा

    माइक्रोसोफ्ट विंडोज जो सुविधा प्रदान करता है वो अन्य OS में नहीं मिलती है। अन्य ओ एस कंप्यूटर विशेषज्ञों द्वारा कंप्यूटर विशेषज्ञों के लिये बनाये गये हैं। विंडोज आम आदमी को कंप्यूटर पर काम करने में आसानी देता है। किसी कमांड को याद करने की जरुरत नहीं होती। कोई भी सोफ्टवेयर इंस्टाल करना हो, बस क्लिक करो, नहीं तो अन्य में पहले मेक करो, इंस्टाल करो, पाथ याद रखो।

    मनीषा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *