Shiv Kumar Batalvi

शिव कुमार बटालवी के कुछ गीत

शिव कुमार बटलवी के बारे में मैंने पहले भी लिखा था और उनके कुछ गीत प्रस्तुत किये थे।
आज उनके जन्मदिन पर फिर से उनके बारे में बता रहा हूं और कुछ और गीत पेश कर रहा हूं।
बिरह का सुलतान – शिव कुमार बटालवी (ਸ਼ਿਵ ਕੁਮਾਰ ਬਟਾਲਵੀ) Shiv Kumar Batalvi
शिव कुमार बटालवी पंजाबी के ऐसे आधुनिक कवि हैं जिनके गीतों में पंजाब के लोकगीतों का आनंद भी हैं।

Shiv Kumar BatalviShiv Kumar Batalvi शिव का जन्म 23 जुलाई 1936 को शकरगढ़, पंजाब (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। बंटवारे के बाद उनका परिवार बटाला में आ गया। ढेरों गीत और कवितायें लिखने वाले शिव कुमार बटालवी को 1965 में अपने काव्य नाटक “लूणा ” के लिये साहित्य अकादमी अवार्ड मिला। शिव के गीतों में प्यार है, दर्द है, सब से बड़ी बात है कि उन्होंने पंजाबी को अपने गीतों से समृद्ध किया। उन्हे बिरह का सुल्तान कहा जाता है। पंजाबी अपने इस कवि से बहुत प्यार करते हैं। पंजाब में कवितायें लोक गीत बन जाती है और कवि पढ़े चाहे जायें या नहीं मगर सुने बहुत जाते हैं। जैसे वारिस शाह की ‘हीर’ गायी और सुनी जाती है। शिव के गीत भी पंजाब में बहुत लोकप्रिय है, इस का अंदाज इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उनके गीतों को लगभग सभी पंजाबी गायकों ने तो गाया ही, महेन्द्र कपूर और नुसरत फतह अली खान साहब ने भी गाया। जगजीत सिंह तथा चित्रा सिंह द्वारा गाये शिव के गीतों की एलबम मेरी सबसे प्रिय एलबम है। (आप इनके गाये शिव के गीतों को सुनने के लिये इन लिंकों पर क्लिक कर सकते हैं)

मिर्चां दे पत्तर

पुनियां दे चन्न नूं कोइ मस्या
कीकण अरघ चड़ाये वे
कद कोई डाची सागर खातिर
मारू थल छड जाये वे

करमां दी मेंहदी दा सजना
रंग कीवें दस्स चड़दा वे
जे किस्मत मिर्चां दे पत्तर
पीठ तली ते लाये वे,

गम दा मोतिया उत्तर आया
सिदक मेरी दे नैनीं वे
प्रीत नगर दा औखा पैंदा
जिंदड़ी किंज मुकाये वे

किकरां दे फुल्लां दी अड़िया
कौन करेंदा राखी वे
कद्द कोइ माली मल्लियां उत्तों
हरियल आन्न छुड़ाये वे

तड़प तड़प के मर गयी अड़िया
मेल तेरे दी हसरत वे
ऐसे इशक दे जुल्मी राजे
बिरहों बाण चलाये वे

चुग्ग चुग्ग रोड़ गली तेरी दे
घुंघणियां वांग चब लये वे
कट्ठे कर कर के मैं तीले
बुक्कल विच दुखाये वे

इक चुल्ली वी पी न सकी
प्यार दे नितरे पानी वे
व्योंध्या सार पये विच पूरे
जां मैं होंठ छुहाये वे.

इश्तेहार

इक कुड़ी जिंदा नां महोब्बत
गुम है गुम है गुम है
साद मुरादी सोहणी फब्बत
गुम है गुम है गुम है

सूरत उसदी परियां वरगी
सीरत दी ओ मरियम लगदी
हंसदी है तां फुल्ल झड़दे ने
तुरदी है तां गजल है लगदी
लम्म सलम्मी सरू दे कद्द दी
उमर अजे है मर के अग्ग दी
पर नैनां दी गल्ल समझदी

गुमयां जनम जनम हण होये
पर लगदा ज्यों कल दी गल है
यूं लगदा ज्यों अज्ज दी गल्ल है
यूं लगदा ज्यूं हुण दी गल्ल है

हुणे तां मेरे कौल खड़ी सी
हुणे तां मेरे कौल नहीं है
एह की छल है एह केही भटकन
सोच मेरी हैरान बड़ी है
नजर मेरी हर आंदे जांदे
चेहरे दा रंग फोल रही है
ओस कुड़ी नूं टोल रही है

ओस कुड़ी नूं मेरी सौं है
ओस कुड़ी नूं अपनी सौं है
ओस कुड़ी नूं सब दी सौं है
ओस कुड़ी नूं जग दी सौं है
जे कित्थे पड़दी सुनदी होवे
ज्यूंदी या ओह मर रही होवे
इक वारी आके मिल जावे
वफा मेरी नूं दाग ना लावे
नहीं तां मैथों जिया ना जांदा
गीत कोइ लिखया ना जांदा

इक कुड़ी जिंदा नां महोब्बत
गुम है गुम है गुम है
साद मुरादी सोहणी फब्बत
गुम है गुम है गुम है

Songs By Shiv Kumar Batalvi

रुख

कुज रुख मैनूं पुत्त लगदे ने
कुज रुख लगदे मांवां
कुज रुख नूंहां धीयां लगदे
कुज रुख वांग भरांवां
कुज रुख मेरे बाबे वक्कण
पत्तर तांवां तांवां
कुज रुख मेरी दादी वरगे
चूरी पावन कांवां
कुज रुख यांरा वरगे लगदे
चुम्मां ते गल्ल लावां
इक मेरी महबूबा वक्कण
मिट्ठा अते दुखांवां
कुज रुख मेरा दिल करदा वे
मोडे चक्क खिडावां
कुज रुख मेरा दिल करदा वे
चुम्मां ते मर जांवा
कुज रुख जद वी रल के झुम्मण
तेज वगन जद हवांवा
सावी बोली सब रुखां दी
दिल करदा लिख जांवां
मेरा वी एह दिल करदा है
रुख दी जूणे आवां
जे तुसां मेरा गीत है सुनना
मैं रुखां विच गांवा
रुख तां मेरी मां वरगे ने
ज्यों रुखां दियां छांवां.

 

यूं तो मैं इतना सक्षम नहीं कि Shiv Kumar Batalvi के इन खूबसूरत गीतों के भावार्थ लिख पाऊं फिर भी अनूपजी और समीर जी के कहने पर कोशिश कर रहा हूं।

 

पहला गीत विरह का गीत है।

 शुरू की पंक्तियों के भाव हैं

 किस्मत की मेंहदी का दोस्त रंग बता कैसे चढ़े

 गर किस्मत ही मिर्ची के पत्ते पीस हथेली पर लगाये रे

 

दूसरी नज्म एक इश्तहार के रूप में है

 एक लड़की जिसका नाम मोहब्बत

 गुम है

 सूरत उसकी परियों जैसी

 सीरत उसकी मरियम जैसी

 हंसती है तो फूल झड़ते हैं

 चलती है तो गजल है लगती

 छोटी उम्र है पर आंखों की बात समझती है

 उसे गुम हुए कई जनम बीत चुके

 पर लगता है ज्यों अभी की बात है

 उस लड़की को मेरी सौगंध है

 अगर कहीं पढ़ या सुन रही हो

 एक बार आ कर मिल जाये

 नहीं तो मैं अब जी नहीं सकता

 गीत कोई भी लिख नहीं सकता

 

तीसरा गीत है रुख यानी वृक्ष

कुछ पेड़ मुझे बच्चों जैसे लगते हैं

कुछ माओं जैसे

कुछ भाइयों जैसे

कुछ बेटियों बहुओं जैसे

कुछ दोस्तों जैसे

दिल करे गले लगा लूं

कुछ महबूबा जैसे

 मी्ठे और कभी खट्टे

 कुछ को दिल करे कंधे लगा कर खिलाऊं

 सब पेड़ों की एक ही भाषा

 दिल करे उसी भाषा में लिख जाऊं

 कभी कभी मेरा दिल करता है

 पेड़ का जनम ले कर आऊं

 यदि आपको मेरा गीत सुनना है

 तो मैं पेड़ों के बीच हॊ गाऊं

 पेड़ मेरी मां जैसे हैं

 मांएं जैसे ठंडी छायाएं।


Comments

6 responses to “शिव कुमार बटालवी के कुछ गीत”

  1. अनूप शुक्ल Avatar
    अनूप शुक्ल

    सही है। हिंदी में भाव बता दें तो और अच्छा! :)

  2. समीर लाल Avatar
    समीर लाल

    बढ़िया तरीका रहा जन्म दिन मनाने का. अनूप जी की तरह ही मैं भी कहना चाहता हूँ कि हिन्दी भावानुवाद सार्थक रहेगा. :)

  3. जगदीश भाटिया Avatar
    जगदीश भाटिया

    आनूप जी और समीर जी,
    कुछ भावों को हिंदी में बताने की कोशिश की है।

  4. समीर लाल Avatar
    समीर लाल

    आभार. :)

  5. Aman chahal Avatar
    Aman chahal

    i like poetry of shiv kumar

  6. देवेंद्र Avatar
    देवेंद्र

    शिव के ढेर सारे गीतों को पंजाबी के साथ ठीक इसी तरह भाव लिख के पेश करे। हमें आपका काम अच्छा लगा।

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