अमृता प्रीतम की एक कविता Poem by Amrita Pritam

अमृता प्रीतम की एक कविता Poem by Amrita Pritam
एक घटना
तेरी यादें
बहुत दिन बीते
जलावतन हुईं
जीतीं हैं या मर गयीं-
कुछ पता नहीं

सिर्फ एक बार एक घटना हुई थी
ख्यालों की रात बड़ी गहरी थी
और इतनी स्तब्ध थी
कि पत्ता भी हिले
तो बरसों के कान चौंक जाते..

फिर तीन बार लगा
जैसे कोई छाती का द्वार खटखटाये
और दबे पांव छत पर चढ़ता कोई
और नाखूनों से पिछली दीवार को कुरेदता…..

तीन बार उठ कर
मैंने सांकल टटोली
अंधेरे को जैसे एक गर्भ पीड़ा थी
वह कभी कुछ कहता
और कभी चुप होता
ज्यों अपनी आवाज को दांतों में दबाता
फिर जीती जागती एक चीज
और जीती जागती आवाज
“मैं काले कोसों से आयी हूं
प्रहरियों की आंख से इस बदन को चुराती
धीमे से आती
पता है मुझे कि तेरा दिल आबाद है
पर कहीं वीरान सूनी कोई जगह मेरे लिये?”

“सूनापन तो बहुत है,
पर तूं जलावतन है, कोई जगह नहीं,
मैं ठीक कहती हूं कोई जगह नहीं तेरे लिये,
यह मेरे मस्तक,
मेरे आका का हुक्म है!”

और फिर जैसे सारा अंधेरा कांप जाता है
वह पीछे को लौटी
पर जाने से पहले कुछ पास आयी
और मेरे वजूद को एक बार छुआ
धीरे से
ऐसे, जैसे कोई वतन की मिट्टी को छूता है…..

इक घटना

तेरियां यादां
बहोत देर होई
जलावतन होईयां
ज्युंदियां कि मोईयां
कुछ पता नईं
सिर्फ इक वारी
इक घटना वापरी

ख्यालां दी रात
बड़ी डूंगी सी
ते ऐणी चुप सी
कि पता खड़कयां वी
वरयां दे काण तरभकदे
फिर तिन वारां जापिया
छाती दा बुहा खड़किया
पोले पैर छत्त ते चड़दा
ते नऊंआ दे नाल
पिछली कांद खुर्चदा
तिण वारां उठ के मैं कुंडियां टोईयां
अंधेरे नूं जिसतरा इक गर्भपीड़ सी
ओ कदे कुझ कैंदा ते कदे चुप होंदा
ज्यूं अपणी आवाज नूं दंदा दे विच पींदा

ते फेर ज्यूंदी जागदी इक शै
ते ज्यूंदी जागदी आवाज
“मैं कालेयां कोहां तो आई हां,
पाहरों आंदी आख तों इस बदन नूं चुरांदी बड़ी मांदी
पता है मैनूं कि तेरा दिल आबाद है
पर किथे सुन्जी सखनी कोई थां, मेरे लई?

“सुन्ज सखन बड़ी है, पर तूं….?
तूं जलावतन हैं, नहीं कोइ थां नहीं तेरे लई
मैं ठीक कैंदी हां कि कोइ थां नहीं तेरे लई
ए मेरे मस्तक, मेरे आका दा हुक्म है”

ते फेर जीकण सारा हनेरा ही कांब जांदा है
ओ पिछां नूं परती पर जाण तो पहलां
ओ उरां होई ते मेरी होंद नूं ओस इक वार छोहिया
होली जही…
ऐंज जिवें कोई वतन दी मिट्टी नूं छूंदा है…..

तेरियां यादां
बहोत देर होई
जलावतन होईयां…

(“अमृता प्रीतम-चुनी हुई कवितायें” से साभार)

आप इस पंजाबी कविता को अमृता जी की आवाज में यहां सुन सकते हैं।

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Comments

4 responses to “अमृता प्रीतम की एक कविता Poem by Amrita Pritam”

  1. Wah!!! Apnaorg kaam nahi kar paaya… par ye kavita.. bahut pasand hai, aur ise bahut din se dhoondh rahi thi.. Dhanyavaad!
    ਪਂਜਾਬੀ ਵਿਚ ਲਿਖਨਾ ਐਖਾ ਹੈ, ਤਾਂ ਕਰਕੇ ਪਂਜਾਬੀ ਵਿਚ post ਵਾਦੂ ਨਹੀ ਹੂਂਦੀ .

  2. समीर लाल Avatar
    समीर लाल

    वाह , वाह, जगदीश भाई, यह ऐपिसोड हमारी फरमाईश पर जारी रखो…भाग २ और ३ , कम से कम…..साधुवाद…मजा आ गया. बधाई.

  3. अनुराग श्रीवास्तव Avatar
    अनुराग श्रीवास्तव

    अमृता प्रीतम जी की रचनाओं को पढने की सदा से ही इच्छा रही है। उनकी प्रमुख कृतियों का हिन्दी अनुवाद पढा भी और उन पर बनी फ़िल्में भी देखीं।
    अब इंटरनेट के ज़रिये और आपकी मेहनत के फलस्वरूप उनकी और भी रचनायें पढने को मिल रही हैं – बहुत अच्छा लगा।

    कृपया सिलसिला बनाये रखिये।

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    "बिरह" का सुलतान – शिव कुमार बटालवी « आईना

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