Category: समाज

  • अपने प्यारे पापा को कविता

    अपने प्यारे पापा को कविता.  कल फ़ादर डे पर यूं ही एक कविता लिखने की कोशिश की है.  वैसे तो मैं कवि नहीं हूँ और कविता लिखने की कुछ समझ भी नहीं है फिर भी कभी कभार कोशिश कर लेता हूँ. आशा है आपको पसंद आएगी और आप इसे जरूर सराहेंगे. यह कविता समर्पित है…

  • क्या चीँटे की जान

    क्या चीँटे की जान

    आज सुबह सुबह शेव करते हुए अचानक वाश बेसिन में देखा, एक काला मोटा चीँटा घूम रहा था। इस डर से कि अभी बच्चे ब्रश करने आएंगे तो कहीं चींटा उन्हे काट न ले, मैने शेव के मग्गे का पूरा पानी चीँटे पर उढ़ेल दिया। मैंने सोचा चीँटा बह जाएगा। मगर थोड़ी देर में देखा,…

  • कैसे कैसे भगवान

    कैसे कैसे भगवान

    अभी कुछ वर्ष पहले जब कन्नड़ अभिनेता राजकुमार का वीरअप्पन ने अपहरण कर लिया था तो उनके किसी भक्त ने हिम्मत न दिखाई? अरे जंगल में जा कर भिड़ जाते वीरअप्पन से। अब मर गए तो बंद पड़ी दुकानों को जला रहे हैं, ऐसी तो थोथि आस्थाएं हैं हमारी। ऐसे बहुत से पात्र हमें मिल…

  • एक अदद भगवान की जरूरत है

    एक अदद भगवान की जरूरत है

    हमारा समाज नित नए भगवान गढ़ता रहता है. हमारे यहां सब से ज्यादा देवी देवता हैं. हमारे देश में सांप से लेकर नदियों तक और सूरज से लेकर अमिताभ बच्चन तक की पूजा होती है. फिर भी हम नये नये भगवान बनाने की कोशिश करते रहते हैं. “क्रिकेट हमारा धर्म है और सचिन हमारा भगवान”…

  • बिस्कुटों वाली बुआ

    बिस्कुटों वाली बुआ

    1968-69 की बात है, मैं तीन या चार साल का रहा होंऊगा। अस्सी साल की वो बुढ़िया हमारे सामने के घर में रहती थी। कंकाल सी काया थोड़ी झुकी हुई, बेतरतीब से सफेद चांदी बाल। थोड़ा तुतलाते हुए पंजाबी बोला करतीं। सब उसे बिस्कुटों वाली बुआ कह कर बुलाते थे। एक आना यानी छह पैसे के…